बीती रातें (कविता) प्रतियोगिता हेतु-29-Jun-2024
बीती रातें (कविता) प्रतियोगिता हेतु
जीवन की जो रात गई, समझो वो सारी बात गई। पवन के हर एक झोंके ने, एक मधुरिम एहसास दई।
उन रातों में शामिल थे, कितनी खुशियांँ,कितने सपने? अब तुम उन सबको भूलो, जो कल तक ही थे अपने।
जगत नियंता जो हैं दिए, उसे सहर्ष स्वीकार करो। कर्मयोग का साधक बनकर, कर्म से अपने प्यार करो।
अंतस की आकुल पीड़ा, राष्ट्र हेतु तुम सहन करो। ख़ुशीपुष्प खिलें घर आंँगन, अपने करतब का वहन करो।
साधना शाही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
Varsha_Upadhyay
30-Jun-2024 11:53 PM
Nice
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